Posts

Showing posts from 2021

Uk

Image
बिस साला बन्दोबस्त लागू की थी। *बेटन* 🙏🏻उत्तराखंड का पहला गांव जो पूरी तरह से वाईफाई युक्त वाला गांव बन गया है। *दूधली गांव देहरादून* 🙏🏻किलर माउंटेन किसे कहा जाता है *नन्दा देवी पर्वत* 🙏🏻पागल नाला कहां स्थित है. *चमोली* 🙏🏻राज्य में एकमात्र स्थान जहां टीन धातु पाया जाताहै। *चमोली* 🙏🏻मसूरी में अंबर चरखा केंद्र की स्थापना किसने की थी। *तारा प्रकाश* 🙏🏻उत्तराखंड में सेवा का अधिकार किस वर्ष पारित हुआ। *2011* 🙏🏻बैटमिंटन क्वीन नाम से जाना जाता हैं। *मधुमिता बिष्ट* 🙏🏻उत्तराखंड में बृहस्पति देव का एकमात्र मंदिर कहां स्थित है। *नैनीताल* 🙏🏻 🙏🏻लाख दीपावली/लक्षदीपावाली किस चंद शासक ने सुरुआत की थी? *उधोत चंद* 🙏🏻राज्य में कृषि विभाग की स्थापना कब हुई। *2 aug 2003* 🙏🏻उत्तराखंड का भगत सिंह किसे कहा जाता है? *वीर केसरी* 🙏🏻गढ़वाल परिषद का पहला अधिवेशन कब हुआ कहां हुआ। *1920 कोटद्वार* 🙏🏻नेपाल के किस प्रधानमंत्री ने उत्तराखंड के डीएवी कॉलेज से पढ़ाई की थी? *Pm राम बहादुर* 🙏🏻किस कमिश्नर के समय आबकारी विभाग की स्थापना हुई। *विलियम ट्रेल 1822* 🙏🏻80 साल बन्दोबस्त किस कम

उत्तराखंड के प्रमुख महत्वपूर्ण दिवस

उत्तराखंड साहित्य दिवस:- 19 सितंबर ( हरिदत्त भट्ट जी की पुण्यतिथि पर) लोक संस्कृति दिवस:- 24 दिसम्बर ( इंद्रमणि बडोनी जी के जन्मदिवस पर) राज्य में मत्स्य दिवस:- 10 जुलाई उत्तराखंड के इतिहास में काला दिवस के रूप में जाना जाता है:- 01 सितम्बर ( 01 सितम्बर 1994 खटीमा गोलीकांड) शहीद दिवस:- 05 सितम्बर ( 05 सितम्बर 1942 को खुमाड़, सल्ट नामक स्थान पर हुई घटना के कारण) गढ़वाल दिवस:- 23 अप्रैल राज्य जल दिवस:- 25 मई हरियाली दिवस:- 5 जुलाई वृक्षारोपण दिवस:- 25 जुलाई ( श्री देव सुमन की स्मृति पर) राज्य में प्रेरणा दिवस:- 12 अगस्त ( नरेंद्र सिंह नेगी जी के जन्म दिवस पर) कुमाऊनी भाषा दिवस:- 1 सितंबर ( 2018 से शुरू) गढ़वाली भाषा दिवस:- 2 सितंबर ( 2018 से शुरू) हिमालय दिवस:- 9 सितंबर ( 2014 से शुरू) उत्तराखंड गौरव दिवस:- 10 सितंबर ( गोविंद बल्लभ पंत जी के जन्म दिवस पर) जागर संरक्षण दिवस:- 17 सितंबर ( प्रीतम भरतवाण जी के जन्म दिवस पर)
​ Practice Set-8 UK Group-C,VDO, VPDO, पटवारी, लेखपाल आदि परीक्षाओं के लिए महत्वपूर्ण! Suresh Guruji wtsp-8923613682 Q_1. हिन्दी के सर्वप्रथम प्रकाशित पत्र का नाम है [A] सम्मेलन पत्रिका [B] उतंड मार्तण्ड [C] सरस्वती [D] नागरी प्रचारिणी पत्रिका Q_2. छायावाद के प्रवर्तक का नाम है - [A] सुमित्रानंदन पन्त [B] श्रीधर पाठक [C] मुकुटधर पाण्डेय [D] जयशंकर प्रसाद Q_3. निम्नलिखित में से वाक्य के शुद्ध रूप का चयन कीजिए - [A] पिछले सोमवार को स्कूल बंद है। [B] पिछले सोमवार को स्कूल बंद रहेगा। [C] पिछले सोमवार को स्कूल बंद होता है। [D] पिछले सोमवार को स्कूल बंद था Q_4. अंगूठा चूमना का अर्थ है - [A] इंकार करना [B] तिरस्कार करना [C] नासमझी दिखाना [D] खुशामद करना Q_5. नीम हकीम खतरे जान का अर्थ है - [A] डींग हांकना [B] बीमारी का गलत इलाज होना [C] खतरनाक चीजें [D] अल्प विद्या भयंकर Q_6. अब अलि रही गुलाब में, अपत कटीली डार में कौन-सा अलंकार है ? [A] उपमा [B] उत्प्रेक्षा [C] अन्योक्ति [D] अतिशयोक्ति Q_7. वहां जाओ। [A] निषेधवाचक [B] अनुरोधवाचक [C] आज्
Image
धार्मिक स्थल भैरव मंदिर , शिव का एक रूप, भैरव मंदिर , शिव का एक रूप, अल्मोड़ा के मंदिरों को आसानी से दो समूहों द्वारा विभाजित किया जा सकता है, शैवती मंदिरों में शिव के महिला स्वरूप के लिए समर्पित मंदिर शामिल हैं। पहले समूह में त्रिपुरा सुंदरी, उदयोत चन्देश्वर और परबतेश्वर का निर्माण १६८८ में अल्मोड़ा के शासक उदयोत चंद की डोटी और गढ़वाल में विजय की उपरांत लाला बाजार के ठीक ऊपर की पहाड़ी पर करवाया |परबतेश्वर के मंदिर को फिर 1760 में अल्मोड़ा के तत्कालीन शासकों, दीप चंद के द्वारा संपन्न किया गया था और इसका नाम बदल कर दीपचंदेश्वर कर दिया गया था। इस वर्तमान मंदिर को नंदा देवी मंदिर कहा जाने लगा जब श्री ट्रेल,प्रसिद्ध ब्रिटिश संभागीय आयुक्त कुमाऊँ द्वारा नंदा की छवि को हटा दिया गया| भोला नाथ के क्रोध को दूर करने के लिए ज्ञान चन्द के शासनकाल में फिर से भैरव के आठ मंदिर, शिव का एक रूप बनाया गया। य़े हैं : काल भैरव बटुक भैरव शाह भैरव गढ़ी भैरव आनंद भैरव गौर भैरव बाल भैरव खुत्कुनिया भैरव ऐसा लगता है कि शिव के आठ गेटों को आठ भैरवों द्वारा देखा जाता है| यहाँ नौ दुर्गा स्वरूपों को समर्पि

उत्तराखण्ड का उल्लेख

स्कन्द पूराण में मानस खंड और केदारखंड के रूप में उत्तराखण्ड का उल्लेख है। पौराणिक ग्रंथो के अनुसार पहले गढ़वाल क्षेत्र को तपोभूमि स्वर्गभूमि और केदारखंड के नाम से पुकारा जाता था। इसी तरह स्कन्द पुराण के मानस खंड व अन्य पौराणिक साहित्य में मानस खंड के नाम से वर्णित क्षेत्र वर्तमान कुमाऊ मंडल ही है। . पौराणिक ग्रंथों और महाकाव्यों में मध्य हिमालय क्षेत्र का विस्तृत वर्णन मिलता है। स्कन्द पुराण के केदारखंड में गढ़वाल और मानस खंड में कुमाऊ का विस्तृत वर्णन है। हरिद्वार से हिमालय तक के विस्तृत क्षेत्र को केदारखंड और नंदा देवी पर्वत से कालागिरी तक के क्षेत्र को मानस खंड कहा गया है। एक तरह से नंदा देवी पर्वत इन दोनों खण्डों की विभाजन रेखा पर स्थित है। बौद्ध धर्म के पालीभाषा वाले ग्रंथो में इसे हिमवंत प्रदेश कहा गया। इस क्षेत्र को देव-भूमि भी कहा गया है। पौराणिक ग्रंथो में कई प्रसंगों का जिक्र आता है। उत्तराखण्ड के आद्य इतिहास के स्रोत पौराणिक ग्रंथ ही हैं। इनके आधार पर ही कई पौराणिक कथाएं जन मानस में सुनी सुनाई जाती रही हैं। ऋग्वेद में उत्तराखण्ड का प्रथम उल्लेख मिलता है। पौराणिक कथाओं में पां

टिहरी के बारे मे आप तक कुछ जानकारी

Image
टिहरी के बारे मे आप तक कुछ जानकारी टिहरी सन् 1815 से पूर्व तक एक छोटी सी बस्ती थी। धुनारों की बस्ती, जिसमें रहते थे 8-10 परिवार। इनका व्यवसाय था तीर्थ यात्रियों व अन्य लोगों को नदी आर-पार कराना। धुनारों की यह बस्ती कब बसी। यह विस्तृत व स्पष्ट रूप से ज्ञात नहीं लेकिन 17वीं शताब्दी में पंवार वंशीय गढ़वाल राजा महीपत शाह के सेना नायक रिखोला लोदी के इस बस्ती में एक बार पहुंचने का इतिहास में उल्लेख आता है। इससे भी पूर्व इस स्थान का उल्लेख स्कन्द पुराण के केदार खण्ड में भी है जिसमें इसे गणेशप्रयाग व धनुषतीर्थ कहा गया है। सत्तेश्वर शिवलिंग सहित कुछ और सिद्ध तीर्थों का भी केदार खण्ड में उल्लेख है। तीन नदियों के संगम (भागीरथी, भिलंगना व घृत गंगा) या तीन छोर से नदी से घिरे होने के कारण इस जगह को त्रिहरी व फिर टीरी व टिहरी नाम से पुकारा जाने लगा। पौराणिक स्थल व सिद्ध क्षेत्र होने के बावजूद टिहरी को तीर्थस्थल के रूप में ज्यादा मान्यता व प्रचार नहीं मिल पाया। ऐतिहासिक रूप से यह 1815 में ही चर्चा में आया जब ईस्ट इण्डिया कम्पनी की सहायता से गढ़वाल राजा सुदर्शन शाह गोरखों के हाथों 1803 में गंवा बैठे अप

उत्तराखंड के प्रमुख समाचार पत्र

उत्तराखण्ड का प्रथम दैनिक समाचार पत्र आदि-अनादि काल से वैदिक ऋचाओं की जन्मदात्री उर्वरा धरा रही देवभूमि उत्तराखण्ड में पत्रकारिता का गौरवपूर्ण अतीत रहा है। कहते हैं कि यहीं ऋषि-मुनियों के अंतर्मन में सर्वप्रथम ज्ञानोदय हुआ था। बाद के वर्षों में आर्थिक रूप से पिछड़ने के बावजूद उत्तराखंड बौद्धिक सम्पदा के मामले में हमेशा समृद्ध रहा। शायद यही कारण हो कि आधुनिक दौर के ‘जल्दी में लिखे जाने वाले साहित्य की विधा-पत्रकारिता’ का बीज देश में अंकुरित होने के साथ ही यहां के सुदूर गिरि-गह्वरों तक भी विरोध के स्वरों के रूप में पहुंच गया। कुमाउनी के आदि कवि गुमानी पंत (जन्म 1790-मृत्यु 1846, रचनाकाल 1810 ईसवी से) ने अंग्रेजों के यहां आने से पूर्व ही 1790 से 1815 तक सत्तासीन रहे महा दमनकारी गोरखों के खिलाफ कुमाउनी के साथ ही हिंदी की खड़ी बोली में कलम चलाकर एक तरह से पत्रकारिता का धर्म निभाना प्रारंभ कर दिया था। इस आधार पर उन्हें अनेक भाषाविदों के द्वारा उनके स्वर्गवास के चार वर्ष बाद उदित हुए ‘आधुनिक हिन्दी के पहले रचनाकार’ भारतेंदु हरिश्चंद्र (जन्म 1850-मृत्यु 1885) से आधी सदी पहले का पहला व आदि हिंदी