ज्वाड़ : ज्वाड़ का अर्थ 'स्त्रीधन' यह गढ़वाल मंडल के उ.का. जनपद में यमुना के तटवर्ती क्षेत्र जौनपुर की एक पराम्परागत सामाजिक प्रथा है। जिसके अनुसार विवाह के समय लड़की को स्त्रीधन के रूप में जो नकद धनराशि प्राप्त होती है तथा माता-पिता के द्वारा उसकी व्यक्तिगत सम्पत्ति के रूप में जो पशुधन- गाय, भैंस, बकरी, मुर्गी आदि, दिये जाते हैं उसे 'ज्वाड़' कहा जाता है यह उसकी व्यक्तिगत सम्पत्ति होती है और उस पर उसके ससुराल वालों को कोई अधिकार नहीं होता है। उसे वह चाहे तो अपने मायके में ही रख सकती है और चाहे तो ससुराल में भी ले जा सकती है। इसको अथवा उससे प्राप्त आय को व्यय करने का अधिकार केवल उसी को होता है। आवश्यकता पड़ने पर यदि उसका पति या कोई अन्य व्यक्ति उसकी ज्वाड़ की पूंजी से धन उधार लेता है तो उसे उसको ब्याज सहित लौटाना होता है।
उत्तराखंड की प्रमुख जनजाति | Uttarakhand Tribes भोटिया राज्य में तिब्बत एवं नेपाल के सीमावर्ती भागों को भोट प्रदेश कहते हैं। भोट प्रदेश में निवास करने वाले लोगों को भोटिया कहा जाता है। भोटिया जनजाति के लोग अल्मोड़ा, चमोली, पिथौरागढ़ व उत्तरकाशी के क्षेत्रों में फैले हैं। भोटिया लोग मंगोल प्रजाति के वंशज है। भोटिया लोग हिमालय के तिब्बती बरमन परिवार से संबंधित बोलियां बोलते हैं। भोटिया युवक पाजामा, कोट में पहाड़ी टोपी पहनते हैं तथा युवती ऊँची बाहों वाला कोट पहनती है जिसे चुंग कहते हैं। महिलाएं कमर से नीचे तक का कुर्ता पहनती है जिसे फूया बेल कहते हैं। मूंगे की माला भोटिया महिलाओं का मुख्य आभूषण होता है। भोटिया लोग बैग, गावला, रैगचिम देवताओं की पूजा करते हैं। भोटिया जनजाति में अपहरण विवाह की प्रथा प्रचलित है। यह लोग हुड़के वाद्ययंत्र बजाकर मनोरंजन करते हैं। यह कृषि तथा पशुपालन द्वारा अपनी आजीविका कमाते हैं। जौनसारी जौनसारी उत्तराखंड का सबसे बड़ा जनजातीय समुदाय है। जौनसारी जनजाति देहरादून जिले की पहाड़ियों पर निवास करती है। जौनसारी जनज...
उत्तराखण्ड का प्रथम दैनिक समाचार पत्र आदि-अनादि काल से वैदिक ऋचाओं की जन्मदात्री उर्वरा धरा रही देवभूमि उत्तराखण्ड में पत्रकारिता का गौरवपूर्ण अतीत रहा है। कहते हैं कि यहीं ऋषि-मुनियों के अंतर्मन में सर्वप्रथम ज्ञानोदय हुआ था। बाद के वर्षों में आर्थिक रूप से पिछड़ने के बावजूद उत्तराखंड बौद्धिक सम्पदा के मामले में हमेशा समृद्ध रहा। शायद यही कारण हो कि आधुनिक दौर के ‘जल्दी में लिखे जाने वाले साहित्य की विधा-पत्रकारिता’ का बीज देश में अंकुरित होने के साथ ही यहां के सुदूर गिरि-गह्वरों तक भी विरोध के स्वरों के रूप में पहुंच गया। कुमाउनी के आदि कवि गुमानी पंत (जन्म 1790-मृत्यु 1846, रचनाकाल 1810 ईसवी से) ने अंग्रेजों के यहां आने से पूर्व ही 1790 से 1815 तक सत्तासीन रहे महा दमनकारी गोरखों के खिलाफ कुमाउनी के साथ ही हिंदी की खड़ी बोली में कलम चलाकर एक तरह से पत्रकारिता का धर्म निभाना प्रारंभ कर दिया था। इस आधार पर उन्हें अनेक भाषाविदों के द्वारा उनके स्वर्गवास के चार वर्ष बाद उदित हुए ‘आधुनिक हिन्दी के पहले रचनाकार’ भारतेंदु हरिश्चंद्र (जन्म 1850-मृत्यु 1885) से आधी सदी पहले का पहला व आदि हिंदी ...
Comments
Post a Comment