उत्तराखंड के पंवार वंश का इतिहास
उत्तराखंड के पंवार वंश का इतिहास | History of Panwar Dynasty of Uttarakhand
परमार या पंवार वंश | Parmar or Panwar Dynasty
- चांदपुर में परमार वंश या पंवार वंश की नींव पड़ी।
- चांदपुर गढ़ का प्रतापी शासक भानुप्रताप था।
- परमार वंश का संस्थापक कनकपाल था।
- पंवार वंश का प्राचीनतम अभिलेख 1455 ई0 का राजा जगतपाल का मिला।
- प्राचीनतम अभिलेख देवप्रयाग के रघुनाथ मन्दिर से प्राप्त हुआ।
- एटकिंसन द्वारा दी गई पंवार शासकों की सूची को अल्मोड़ा सूची कहा जाता है।
- पंवार राजाओं की सूची के बारे में 04 अलग-अलग सूची प्राप्त है।
- विकेट की सूची सर्वाधिक मान्य है क्योंकि यह सूची सुदर्शन शाह के सभासार ग्रंथ से मेल खाती है।
- पंवार वंश के कुल 60 शासक हुये।
- गढ़वाल वर्णन पुस्तक के लेखक हरिकृष्ण रतूड़ी है।
- गढ़वाल जाति प्रकाश पुस्तक के लेखक बालकृष्ण शांति भट्ट है।
प्रसिद्ध गढ़वाली मुद्राएं | Famous Garhwali Currencies – पंवार वंश
- फतेहशाह ने अष्टकोण रजत मुद्रा जारी की थी।
- जउ एक प्रकार की मुद्रा जो लद्दाख टकसाल में बनती थी।
- 1 तिमारी बराबर 10 टका होता था।
- 40 टका बराबर एक गढ़वाली रूपया होता था।
- 50 टका बराबर एक फर्रूखाबादी रूपया होता था।
- टका व तिमाशी का प्रचलन ब्रिटिश शासन में बंद हो गया था।
परमार या पंवार वशों के राजाओ के नाम (विकेट के अनुसार) – पंवार वंश
क्र0स0 | राजाओं के नाम | कार्यकाल वर्ष में | मृत्युकाल वर्ष | वर्ष (ईसा पूर्व में) |
1 | कनकपाल | 11 | 51 | 756 |
2 | श्याम पाल | 26 | 60 | 782 |
3 | पदुपाल | 31 | 45 | 813 |
4 | अभिगत पाल | 25 | 31 | 838 |
5 | सिगलपाल | 20 | 24 | 858 |
6 | रत्नपाल | 49 | 68 | 907 |
7 | सलिपाल | 8 | 17 | 915 |
8 | विधिपाल | 20 | 20 | 935 |
9 | मदनपाल (प्रथम) | 17 | 22 | 952 |
10 | भक्तिपाल | 25 | 31 | 977 |
11 | जयचन्द पाल | 29 | 36 | 1006 |
12 | श्याम पाल | 26 | 60 | 782 |
13 | पदुपाल | 31 | 45 | 813 |
14 | अभिगत पाल | 25 | 31 | 838 |
15 | सिगलपाल | 20 | 24 | 858 |
16 | रत्नपाल | 49 | 68 | 907 |
17 | सलिपाल | 8 | 17 | 915 |
18 | विधिपाल | 20 | 20 | 935 |
19 | मदनपाल (प्रथम) | 17 | 22 | 952 |
20 | भक्तिपाल | 25 | 31 | 977 |
21 | जयचन्द पाल | 29 | 36 | 1006 |
22 | पृथ्वी पाल | 24 | 40 | 1030 |
23 | मदन पाल (द्धितीय) | 22 | 30 | 1052 |
24 | अगस्ती पाल | 20 | 33 | 1072 |
25 | सूरती पाल | 22 | 36 | 1094 |
26 | जयन्त सिंह पाल | 19 | 30 | 1113 |
27 | अनन्त पाल (प्रथम) | 16 | 24 | 1129 |
28 | आनन्द पाल (प्रथम) | 12 | 20 | 1141 |
29 | विभोग पाल | 18 | 22 | 1159 |
30 | सुभजन पाल | 14 | 20 | 1173 |
31 | विक्रम पाल | 15 | 24 | 1188 |
32 | विचित्र पाल | 10 | 23 | 1198 |
33 | हंस पाल | 11 | 20 | 1209 |
34 | सोन पाल | 7 | 19 | 1216 |
35 | कदिल पाल | 5 | 21 | 1221 |
36 | कामदेव पाल | 15 | 24 | 1236 |
37 | सलाखान पाल | 18 | 30 | 1254 |
38 | लखन देव | 23 | 32 | 1277 |
39 | अनन्त पाल (द्धितीय) | 21 | 29 | 1298 |
40 | पूरब देव | 16 | 33 | 1217 |
41 | अभय देव | 7 | 21 | 1324 |
42 | जयराम देव | 23 | 24 | 1347 |
43 | असल देव | 9 | 21 | 1356 |
44 | जगत पाल | 12 | 19 | 1368 |
45 | जीत पाल | 19 | 24 | 1387 |
46 | आनन्द पाल (द्धितीय) | 28 | 41 | 1415 |
47 | अजय पाल | 31 | 59 | 1446 |
48 | कल्याण शाह | 9 | 40 | 1455 |
49 | सुन्दर पाल | 15 | 36 | 1470 |
50 | हंसदेव पाल | 13 | 24 | 1484 |
51 | विजय पाल | 11 | 21 | 1494 |
52 | सहज पाल | 36 | 45 | 1530 |
53 | बलभद्र शाह | 25 | 41 | 1555 |
54 | मान शाह | 20 | 29 | 1575 |
55 | श्याम शाह | 9 | 31 | 1584 |
56 | महिपत शाह | 25 | 65 | 1609 |
57 | पृथ्वी शाह | 62 | 70 | 1671 |
58 | मेदनी शाह | 46 | 62 | 1717 |
59 | फतेह शाह | 48 | 51 | 1765 |
60 | उपेन्द्र शाह | 1 | 22 | 1766 |
61 | प्रदीप्त शाह | 63 | 70 | 1829 |
62 | ललिपत शाह | 8 | 30 | 1837 |
63 | जयकृत शाह | 6 | 33 | 1843 |
64 | प्रद्युम्न शाह | 18 | 29 | 1861 |
पंवार नरेशों का प्रशासन | Administration of Panwar kings – पंवार वंश
- गढ़ नरेश राज्य का सर्वोच्च अधिकारी होता था।
- गढ़ नरेश के पुत्र को युवराज या टीका या कुमार कहा जाता था।
- गढ़नरेशों के मंत्रीमण्डल में धर्माधिकाकारी का प्रमुख स्थन होता था, मोलाराम ने इसके लिए ओझागुरू का प्रयोग किया था।
- गढ़राज्य का सर्वोच्च मन्त्री मुख्यतार होता था।
- गढ़राज्य की राजधनी सुरक्षाधिकारी को गोलदार कहते थे।
- परगने के सैनिक शासन फौजदार कहलाते थे।
- सन्देशवाहक को चणु कहा गया।
- राजा के साथ चांदी का दंड लेकर चलने वाला चोपदार होता था।
- परगनों में राजस्व वसूली का कार्य थोकदार करते थे। जिन्हें कमीण या सयाणा भी कहा जाता था।
- गढ़ सेना पलटनों में विभक्त थी, जिन्हें सलाणा, बधाण और लोहवा कहते थे।
पंवार वंशो की भू-व्यवस्था | Land system of Panwar dynasty
- राज्य की आय का प्रमुख साधन सिरती या भूमिकर था।
- राजा की आज्ञा से कृषि भूमि पर कृषि करने वाले किसानों को आसामी कहा जाता था।
- आसामी तीन प्रकार के होते हैं। – खायकर, सिरतान, मौरूसीदार।
- राजा तीन परिस्थितियों में भू-स्वामित्व दूसरे को दे सकता था – 1. संकल्प या विष्णुप्रीति (विद्वान ब्राह्मणों), 2. रौत- वीरता प्राप्त सैनिकों को। 3.जागीर -राज्याधिकारियों को।
- जिस व्यक्ति को रौत या जागीर दी जाती थी उसे थातवान या भू-स्वामी कहते थे।
- थातवान भूमि पर अस्थायी रूप से बसे किसानों को खायकर कहा जाता था, जिसे वह कभी भी हटा सकता था।
- पवांर शासक कृषि उपज का एक तिहाई कर के रूप में लेते थे, जिसे तिहाड़ कहा जाता था।
- औताली एक प्रकार का राजस्व कर था।
- नापतौल की पद्धति पाथा का प्रचलन अजयपाल ने किया।
- पंवार काल में ग्रामीण करों को एकत्रित कर थोंकदार को पधान भेजता था।
- कौन सा पद वंशानुगत था- पधान।
- आय-व्यय का कार्य करने वाला अधिकारी -दीवान।
पंवार वंश के समय साहित्य | Literature during the Panwar Dynasty
- फतेह प्रकाश – रत्न कवि।
- रामायण प्रदीप – मेधाकर शर्मा।
- वृत कौमुदी – मतिराम।
- गढ़राजवंश – मौलाराम।
- प्रेम पथिक – तोताराम गैरोला (नरेन्द्र शाह पर आधारित)।
- फतेहशाह कर्ण – जटाधर मिश्र।
- सभा भूषण – हरिदत शर्मा।
- कीर्ति विलास – सदानन्द डबराल।
- सर्वसंग्रह शास्त्र – सुदर्शन शाह।
- मनोदय काव्य – भरत कवि।
- फतेह प्रकाश ग्रंथ – भूषण कवि।
- जहांगीर विनोद – भरत कवि ज्योतिकाराय।
- गोरखवाणी- सुदर्शन शाह प्रथम गढ़वाली भाषा की रचना।
- गढ़वाल जाति प्रकाश – बालकृष्णन शांति भट्ट।
- वृत्त विचार ग्रन्थ- कवि राज सुखदेव।
- फूलकण्डी- महन्त योगेन्द्रपुरी।
- गढ़वाल राज्ञा वंशावली- देवराज कृत।
- भारतीय लोक साहित्य- श्याम परमार।
- गढ़वाल की दिंवगत विभूतियां- भक्त दर्शन।
- दिग्लोरी दैट वाज गुर्जर- कन्हैया लाल।
- गोरखानाथ एंड कनफटा योगीज – जार्ज फ्रेजर।
- जय-विजय नाटक- भवानी दत ( प्रथम गढ़वाली नाटक)।
- विरह, छन्दमाला, श्री पुरलीला- लीलानंद कोटनाला।
- गढ़वीर महाकाव्य- रूपमोहन सकलानी (रिखोला लोदी पर)
- मोछंग काव्य संग्रह- चक्रधर बहुगुणा।
- गढ़वाल का इतिहास-हरिकृष्ण रतू़ड़ी।
- नरेन्द्र हिन्दू लॉ- हरिकृष्ण शास्त्री।
- गढ़वाल भूगोल – हरिदत्त शास्त्री।
- वास्तु शिरोमणी ग्रंथ- कवि शंकर।
- गुलदस्त तवारिख-इ-कोह -मियां प्रेम सिंह।
पंवार वंश में प्रयोग प्रमुख शब्दावली | Major terminology used in Panwar dynasty
- थात– भूमि।
- थातवान– भू स्वामी।
- खैकर – थातवान के कृषक।
- सिरतान-कृषि भूमि वार्षिक भोगी, जो भू स्वामी को किराया देता है।
- गूंठ या विष्णुप्रिती भूमि मन्दिरों को दान दी जाने वाली भूमि।
- सदावर्त– वह अनुदान जो धर्मार्थ कर्यों के लिए उपयोग या तीर्थयात्रियों के भोेेेजन आदि की व्यवस्था के लिए प्रयोग होता था।
- हलिया– बड़े भू स्वामी खेतों में काम करने के लिए व्यवस्था थी।
- संजायत भूमि– वह भूमि जिसका बंटवारा नहीं किया गया जिसका स्वामित्व गांव के सम्पूर्ण निवासियों के पास है।
- गूल– खेतों की सिंचाई के लिए बनाई गई छोटी नहर।
- नौला– भूमिगत जल को एकत्रित करने के लिए बनाये जाते थे।
- सिमार या गजार– भूमि का कीचड़ युक्त हिस्सा है।
- खाल– वर्षा का जल संरक्षण के लिए बनाए जाते हैं।
- घराट या पनचक्की– आटा पीसने के लिए प्रयोग किया जाता था।
- पधान– गांव में राजस्व एकत्र करने का काम, वह धनराशि पटवारी को सौंप देता था, इसका पद वंशानुगत होता था।
- थोकदार– राज्य व पधान के मध्य राजस्व अधिकारी, थोकदार को कमीन या सयाना भी कहा जाता था।
- बेनाप भूमि- वेस्ट लैण्ड जिसमें गांव का स्वामित्व होता था।
- कैसरे हिन्द भूमि– बंजर भूमि या जहां कभी खेतों न की गई हो, इसका स्वामित्व राज्य सरकार के पास होता है।
पंवार वंश से सम्बन्धित प्रश्नोत्तरी | Panwar Dynasty Quiz
- गढ़वाल का महर्षि कहा गया- तारादत गैरोला।
- गढ़वाल जनजागरण का पितामाह- तारादत्त गैरोला।
- पंवार वंश में राज के बाद दूसरा बड़ा पद- वजीर या मुख्तार।
- राजस्व का प्रमुख अधिकारी- दश्तरी।
- सेना को वेतन देने वाला अधिकारी- बख्शी।
- 1791 में गोरखों ने किस गढ़ पर आक्रमण किया- लंगूर गढ़।
- खुडबुड़ा युद्ध के बारे में जानकारी मिलती है- वैली आफ दून।
- गोरखा आक्रमण के समय लंढौर के गुर्जर शासक ने प्रद्युम्न की सहायता की – रॉय दयाल सिंह।
- किस लेखक द्वारा प्रद्युम्न शाह के कार्यकाल को कुशासन में डुबा हुआ बताया था- शिव प्रसाद डबराल।
- पाली गांव का युद्ध हुआ-1786 में हर्षदेव जोशी व मोहन सिंह।
- जयकृत शाह के समय तानाशाही की तरह कार्य करने लगा-कृपा राम डोभाल।
- पाली गांव का युद्ध हुआ- 1786 में हर्ष जोशी व मोहन सिंह।
- जयकृत शाह के समय तानाशाही की तरह कार्य करने लगा-कृपा राम डोभाल।
- किस पुस्तक से ज्ञात होता है कि फतेहशाह ने गुरू रामराय को गुरूद्वारा के लिए तीन गांव दान दिए- मेमवायर्स आफ देहरादून।
- पूछी कर लिया गया था- गाय व भैंसो से।
- राजा भवानी शाह द्वारा नया भूमि बंदोबस्त लागू हुआ- 1861
- किसने श्रीदेव सुमन की हड़ताला को ऐतिहासिक अगशन की संज्ञा दी-शेखर पाठक।
- अखिल पर्वतीय सम्मेलन कब हुआ – 20 मार्च 1938।
- श्री देव सुमन को सर्वप्रथम टिहरी जेल में डोला गया-30 दिसम्बर 1943।
- बल सभा की स्थापना की गयी-1935 में सत्य नारायण रतूड़ी।
- आजाद पंचायत की सभाएं होती थी-चंदा दोजरी, लाखामण्डल।
- सकलाना विद्रोह हुआ- 11 जनवरी 1948।
- टिहरी में अन्तिम सरकार की स्थापना- 15 फरवरी 1948।
- व्यास घाटी का अंतिम गांव- कुटी।
- गढ़वाली फौज का स्थायी लेफ्टनंट कर्नल किस गढनरेश को बनाया गया- नरेन्द्र शाह।
- परमार शासक की तुलना औरंगजेब से की- मेदनी शाह।
- टै्रवल्स इन इण्डिया पुस्तक के लेखक-ट्रैवेनियर।
- चीन पर लालछाप पुस्तक के लेखक- श्री शांता प्रसाद।
- कर्णावती व मुगल सेना के बीच युद्ध कस वर्णन मिलता है स्टोरियों द मंगोर पुस्तक में जिसके लेखक निकोलस मनूची।
- पृथ्वीपति शाह के समय सिरमौर के शासक- मन्धाता प्रकाश।
- एनड्राडे व अजवेड़ो यात्री गढ़वाली आए- महिपति शाह।
- महिपति शाह के तिब्बत अभियान का वर्णन मिलता है- अर्ली जैसुएट ट्रैवल्स इन इण्डिया।
- सवरी ग्रंथ का मुख्य विषय था- तांत्रिक विद्या।
- द अर्ली ट्रैवल्स इन इण्डिया के लेखक- एम फोस्टर।
- गढ़वाल का ऐसा मन्दिर जिसकी शैली गुजरात एवं राजस्थान के सोलंकी मंदिरों से मिलती है- आदिबद्री।
- शराब बनाने की कला को कलाल कहते हैं।
- भूमि माप की बड़ी व छोटी इकाई-मुठ्ठी (छोटी) व ज्यूला (बड़ी)।
- चालीस टका होता था- रूपया।
- दस टका होता था- एक तिमासी।
- पंवार कालीन टकसाल थी- श्रीनगर।
- वस्त्र सिलने का काम करते थे- ओजी।
- काष्ठ भांड बनाने वाले- चुनार या चम्यार।
- परगना का शासक-थोकदार।
- परगना की सबसे छोटी इकाई- पट्टी।
परमार या पंवार वंश के राजाओ के नाम | Names of the kings of the Parmars or Panwars
कनकपाल | Kanakpal – पंवार वंश
- 9वीं शताब्दी में गढ़वाल में 52 ठकुरी राजाओं का शासन था।
- इन 52 गढ़ों में एक चांदपुर गढ था।
- चांदपुर गढ़ का राजा भानुप्रताप को सोनपाल भी कहते थे।
- हरिकृष्ण रतूड़ी व एटकिंसन अनुसार कनकपाल धार नगरी गुजरात से चांदपुर गढ़ तीर्थयात्रा पर आया था।
- सोनपाल ने अपनी पुत्री का विवाह कनक पाल से कर दिया।
- कनकपाल ने परमार वंश की स्थापना चांदपुर गढ़ में 888 ई0 में किया, तिथि सम्बन्धन में इतिहासकारों में मतभेद है।
- चांदपुर गढ़ चमोली में पड़ता है, यही पंवार शासकों की प्रथम राजधानी थी।
- पातीराम ने अपनी पुस्तक गढ़वाल एनशियन्ट एन्ड मॉर्डन में लिखा कि कनकपाल मालवा से आये।
- गुर्जर प्रदेश से कनकपाल के आने का प्रमाण आदि बदरी मंदिर है जिसकी रचना शैली गुजरात के सोंलकी मंदिर से मिलती है।
- सुदर्शन शाह के सभासार ग्रंथ में लिखा है किय व परमार वंश है।
- मणिकलाल मुंशी द्वारा रचित पुस्तक दिग्लोरी दैट वाज गुजर में मालवा व गुजरात के भाग को गुर्जर देश बताया।
- भारतीय लोक साहित्य पुस्तक के लेखक श्याम परमार ने पवांड़ा शब्द की जानकारी दी।
- मेलाराम व हार्डविक वंशावली में कनकपाल के स्थान पर दूसरा नाम बताते हैं।
- कौनपुर गढ़ को कनकपाल का गढ़ माना जाता है।
अजयपाल | Ajaypal – पंवार वंश
- अजयपाल गढ़वाल के परमार वंश का 37 राजा था।
- राहुल सांस्कृतयायन ने अजयपाल को पंवार वंश संस्थापक माना।
- रायबहादुर पातीराम ने अजयपाल को गढ़वाल से सम्बोधित किया।
- अजयपाल ने 52 गढ़ों को अपने बाहुबल से जीता था।
- अजयपाल का कार्यकाल 1490 ई0 से 1519 ई0 तक था।
- 1491 में कुमाऊँ के कीर्तिचंद ने अजयपाल को बधाण गढ़ के युद्ध में हराया था।
- अजयपाल ने अपनी राजधानी देवलगढ़ 1512 ई0 में राजप्रसाद बनवाया और अजयपाल ने 1517 ई0 को राजधानी श्री नगर में स्थानान्तरित की।
- देवलगढ़ में अजयपाल ने अपनी कुलदेवी राजराजेश्वरी का मन्दिर बनवाया था।
- अजयपाल ने देवलगढ़ में सत्यनाथभैरव गुफा का जीर्णोद्धार करवाया था।
- अजयपाल ने श्रीनगर में कालिका देवी मठ का निर्माण करवाया।
- अजयपाल ने सरोला ब्रह्मणों की नियुक्ति की थी।
- अजयपाल ने प्रसिद्ध मापतौल का पाथा का प्रचलन किया था धुलीपाथा का प्रचलन भी अजयपाल ने किया था।
- अजयपाल को गढ़वाल का अशोक कहा जाता है।
- प्रो0 अजय सिंह रावत ने अजयपाल को कहा जाता है।
- कवि भरत के मानोदय काव्य में अजयपाल की तुलना कृष्ण, भीम, कुबेर, इन्द्र से की गयी है।
- गढ़वाल का कृष्ण अजयपाल कहा जाता है।
- अजयपाल गोरखानाथ पंत का अनुयायी था।
- गोरखानाथ पंत के अन्य अनुयायी भर्तृहरि व गोपीचंद थे।
- गोरखनाथ एन्ड द कनफटा योगीज ग्रंथ के लेखक जार्ज डब्ल्यू व्रिग्स थे।
- नवनाथ कथा ग्रंथ में अजयपाल को गोरखानथ सम्प्रदाय के 84 सिद्धों में एक सिद्ध माना जाता है।
- सांवरी ग्रंथ के लेखक डा0 शूरवीर सिंह का हस्तलिखित ग्रंथ है।
- सांवरी ग्रंथ तांत्रिक विद्या पर आधारित पुस्तक थी।
- देवलगढ़ में विष्णु मन्दिर के सामने की दीवार पर अजयपाल का पद्मासन की मुद्रा में चित्र बना है।
- अजयपाल की मृत्यु 1519 ई0 में हुयी।
- अजयपाल का उत्तराधिकारी कल्याण शाह था।
- अजयपाल का उत्तराधिकारी कल्याण शाह था।
अजयपाल से पूर्व परमार शासक | Parmar ruler before Ajaypal
- चमोली जनपद के सुकण्ड ग्राम में सुरपाल या सुरतिपाल का अभिलेख प्राप्त हुआ।
- सुरति पाल परमार वंश का 15 वां शासक था।
- परमारों के 24वें राजा सोनपाल की राजधानी भिल्लंग घाटी में थी, आज भी इस घाटी को सोनी-भिल्लंग कहा जाता है।
- परमारों के 28वें राजा जगतपाल का 1455 ई0 का एक ताम्रपत्र देवप्रयाग के रघुनाथ मंदिर से प्राप्त हुआ।
- इस ताम्रपत्र में जगतपाल को रजबार कहा गया है।
कफ्फू चौहान | kafu chauhan
- कफ्फू चौहान उप्पू गढ़ के सरदार थे।
- कफ्फू चौहान का कथन थ कि मैं पशुओं में सिंह और पक्षियों में गरूड़ की तरह हूँ।
- कफ्फू चौहान के लिए अजयपाल ने कहा था वीर तुम जीत गए और में हार गया।
- अजयपाल का अंतिम युद्ध उप्पूगढ़ या उदयपुर पर ही था।
- अजयपाल ने स्वयं कफ्फू चौहान को मुखाग्नि दी थी।
बलभद्रशाह | Balabhadra Shah- पंवार वंश
- सहजपाल के बाद 43 वें राजा बलभद्र शाह थे।
- बलभद्र शा के उपनाम बलराम, दुलारामशाह व बहादुर मिलता है।
- बलभद्र शाह के समय राजदूत भेजने की प्रथा प्रारम्भ हुयी थी।
- 1581 में ग्वालदम का युद्ध बलभद्रशाह व रूद्रचंद के बीच हुआ।
- शिव प्रसाद डबराल युद्ध की तिथि 1591 ई0 मानते हैं।
- ग्वालदम का युद्ध में रूद्रचंद की हार के साथ सेनापति पुरूषोतम पंत की मृत्यु हुयी थी।
- कवि देवराज ने बलभद्र शाह की तुलना भीम से की थी
- बलभद्र शाह प्रथम राजा थे जिन्होंने अपने नाम के आगे शाह की उपाधि धारण की थी।
- परन्तु कल्याण शाह के नाम के आगे भी शाह लगा हुआ था।
- भक्तदर्शन के अनुसान परमारों को शाह की उपाधि औंरगजेब ने दी है।
- शाह उपाधि के बारे में कोई भी तर्क सही नहीं है मगर हम यह कह सकते हैं के बलभद्र शाह के बाद की क्रमागत शाह उपाधिक का प्रयोग हुआ है।
- लोग कहते हैं कि परमारों को शाह की उपाधि लोदी वंश के शासक बहलोल लोदी ने दी थी।
मानशाह | Man shah – पंवार वंश
- मानशाह 44 वे राजा थे, जो बलभद्र शाह का उत्तराधिकारी था।
- मानशाह के लेख देवप्रयाग के क्षेत्रपाल मंदिर (1608 ई0) व रघुनाथ मन्दिर (1610 ई0) से मिले।
- मानशाह का शासनकाल 1591 ई0 से 1611 ई तक था।
- मानशाह के काल में चंद शासक लक्ष्मीचंद ने 07 बार गढ़वाल पर आक्रमण किए और हार का मुंह देखना पड़ा।
- 1605 ई0 युद्ध में गढ़वाल सेनानायक खतड़ सिंह मारा गया, इसी कारण कुमांऊँ में खतडुवा महोत्सव मनाया जाता है।
- बद्रीदत्त्त पाण्डे के अनुसार मानशाह की सेनापति नन्दी था।
- मानशाह के समय गढ़वाल कवि भरत था जिसने मानोदय काव्य की रचना की।
- मानोदय काव्य की रचना संस्कृति भाषा में हुयी।
- मानोदय काव्य में मानशाह को सूर्य के समान तेजस्वी व राजा बलि के समान दानवान बताया गया है।
- कवि भरत को जहांगीर द्वारा ज्योतिकराय की उपाधि दी गयी।
- मानशाह के समय के 04 अभिलेख प्राप्त हुये।
- मानशाह ने श्री नगर के अन्तर्गत मानपुर नामक नगर बसाया।
- फोंस्टर ने अपनी पुस्तक में यूरोपीय यात्री विलियम की 1608-1611 तक की यात्रा का वर्णन किया है।
- मानशाह ने पश्चिम में तिब्बत का दाबा प्रांत जीता था।
- दाबा प्रांत का राजा मानशाह को सवा सेर सोना और एक चार सींग वाला मेंढा कर के रूप में देता था।
- मानशाह अबकर व जहांगीर के समकालीन था, और चंद राजा लक्ष्मी चंद के समकलीन था।
जीतू बगड़वाल | jeetu baghwal
- जीतू बगड़वाल बगुड़ी गांव टिहरी का रहने वाला था।
- जीतू बगड़वाल के पिता का नाम गरीबाराई था।
- जीतू बगड़वाल की माता मा नाम सुमेरू था।
- जीतू बगड़वाल के समय देवलगढ़ का शासक मानशाह था।
सहजपाल | Sahajpal
- देवप्रयाग के क्षेत्रपाल मन्दिर के द्वार पर एक शिलालेख 42वें राजा सहजपाल का है, जो 1548 ई0 का है।
- देवप्रयाग रघुनाथ मन्दिर में घन्टी पर लेख है जो राजा सहजपाल 1561 ई0 का लेख है।
- सहजपाल अकबर के समकालीन था।
- सहजपाल को वीर गुणज्ञ सुखद प्रजाया कहा गया है।
- इसके समय अकबर ने गंगा को स्रोत खोजने के लिए एक दल भेजा था।
श्यामशाह | Shyamshah- पंवार वंश
- श्यामशाह का शासन काल 1611 ई0 से 1631 तक था।
- 45वें राजा का उल्लेख जहांगीर नामा में मिलता है।
- मुगल दरबार ने श्रीनगर शासक श्याम को घोड़े व हाथी उपहार में दिए गये थे।
- श्यामशाह की मुगल राजा जहांगीर से भेंट हुयी थी।
- श्यामशाह ने भी दाबा प्रान्त जीतकर एक सेर स्वर्ण चूर व एक चंवर गाय कर के रूप में प्राप्त की।
- श्यामशाह के समय सती प्रथा का उल्लेख मिलता है।
- श्यामशाह के समय राजगुरू शंकरदेव थे।
- श्यामशाह के समय वास्तु शिरोमणि ग्रंथ की रचना हुई, रचनाकार कवि शंकरदेव थे।
- श्यामशाह ने श्री नगर में श्यामशाही बाग बनवाया।
- श्यामशाह ने सिलसारी नामक ग्राम में कुछ अंश शिवनाथ जोगी को दान में दिए।
- श्यामशाह को विलासी राजा की उपमा दी गयी।
- इसकी मृत्यु के पश्चात् इसकी 60 रानियां सती हुई थी।
- श्यामशाह की कोई सन्तान नहीं थी।
- 1625 में केशोराय मठ की स्थापना महिपति शाह ने श्रीनगर में की।
- केशोराय मठ के द्वार पर उत्कीर्ण लेख में महिपतिशाह की नाम आता है, इससे लगता है परिवार में श्रेष्ठ होने के नाते इसका निर्माण महिपति शाह ने करवाया होगा।
- देवलगढ़ में सत्यानाथ मंदिर का जीर्णाद्धार 1624 ई0 में हुआ था।
- हरीकृष्ण रतूड़ी ने श्यामशाह राज्य काल की अंतिम अवधि 1629 ई0 बतायी।
- पादरी एजवेड़ों ने 1631 को श्रीनगर में गढ़नरेश का दाहसंस्कार देखा था, जो सम्भवतः श्यामशाह ही था।
महिपति शाह | Mahipati Shah – पंवार वंश
- महिपति शाह को गर्व भंजन कहा जाता हैै।
- इसके राज्यरोहण की तिथि हरिकृष्ण रतूड़ी ने 1629 ई0 डबराल ने 1631 ई0 अजयसिंह रावत ने 1622 ई0 बताया है।
- इसके पिता का नाम दुलाराम या रामशाह था।
- सबसे अधिक उम्र में राजा बनने वाला गढवाल शासक था।
- मुगल लेखों में इसे अक्खड राजा कहा गया, क्योंकि वह शाहजहां के राज्यभिषेक में शामिल नहीं हुआ था।
- महिपति शाह ने तिब्बत पर तीन आक्रमण किए, जिसका एन्ड्राडे ने वर्णन किया है।
- सी बैसिल्स द्वारा रचित अर्ली जैसूट टैªवल्स इन सेन्ट्रल एशिया में एन्ड्राडे का यात्रावृतांत लिखा गया है।
- एनड्राउे और उसका सहयात्री मार्किवस था, जो इसाई धर्म के प्रचार के लिए महिपति शाह के समय गढ़वाल आए थे।
- महिपति शान ने भूलवंश कुछ नागा साधुओं की हत्या कर दी थी।
- इसकी आत्मग्लानि के कारण वह ऋषिकेश भरत मंदिर में तपस्या करने गए।
- नागा साधुओं का पाप धोने के लिए महिपति शाह ने कुमाऊँ युद्ध में बलिदान दे दिया।
- रोटी सूची प्रथा का प्रारम्भ महिपतिशाह ने किया।
- महिपति शाह के सेनापति माधो सिंह भण्डारी, रिखोला लोदी और बनवारी दस थे।
- बनवारी दास सेनापति चित्रकार मौलाराम वंशज के परिवार का सदस्य था।
- रिखोला लोदी ने सिरमौर, तिब्बत एंव गढ़वाल के दक्षिण भाग जीतने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
- मौलाराम ने महिपति शाह को महाप्रचण्ड भुजदण्ड कहा।
- कर्णावती महिपति शाह की पत्नी थी।
- कर्णावती को ताराबाई और गोलकुण्डा दुर्गावती उपनाम से भी जाना जाता है।
माधो सिंह भण्डारी | Madho Singh Bhandari
- माधो सिंह भण्डारी को गर्व भंजक कहा जाता है।
- माधो सिंह का जन्म मलेथा टिहरी गढ़वाल में हुआ था।
- माधो सिंह के पिता का नाम कालू भण्डारी था।
- देवप्रयाग रघुनाथ मन्दिर के द्वार पर एक अभिलेख मिला जिसमें माधोसिंह भंण्डारी के पुत्र गजेसिंह व पुत्रबहु मथुरा बौराणी का उल्लेख मिलता हैै।
- 1640 ई0 में रानी कर्णावती का ताम्रलेख मिला, जिसमें चमोली के एक ब्राह्मण को भूमिदान की, जिसमे माधो सिंह को साक्षी माना गया है। इस ताम्रपत्र से ज्ञात होता है कि चीन का तुमुल युद्ध 1640 इ0 के आसपास हुआ होगा।
- माधो सिंह छोटा चीन के तुमुल युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुए।
- माधों सिंह की मृत्यु सतलज नदी के तट पर हुयी।
- पृथ्वीपति शाह के समय भी सेनानायक रहा होगा।
- माधो सिंह ने मलेथा की गूल का निर्माण किया।
- मलेथा की गूल या सुंरग छेणाधार पहाड़ी पर बनाई और चकमा नदी या डागर नदी से पानी निकाला था।
- मलेथा की गूल की लम्बाई लगभग 225 फीट थी।
रानी कर्णावती | Queen Karnavati
- महिपतिशाह की मृत्यु के बाद पृथ्वी पति शाह शासक बना, जो अल्पवयस्क था।
- पृथ्वीपति शाह की संरक्षिका महारानी कर्णावती बनी।
- 1636 ई0 में मुगल, सेनापति ( शाहजंहा द्वारा ) नवाजत खां ने दून घाटी पर आक्रमण किया, उस समय गढ़वाल की संरक्षिका कर्णावती थी, जिसकी सूझ-बूझ से मुगल सैनिकों को पकड़कर उनके नाक कटवा, दिए तब से नाक कटनी रानी कहा जाता है।
- निकोलस मनूची ने अपनी पुस्तक स्टोरियो डू मोगोर में कर्णावती को साक्षात दुर्गा कहा है।
- कर्णावती के समय दून घाटी की राजधानी नवादा थी।
- देहरादून में रानी कर्णावती ने करनपुर गांव बसाया था।
पृथ्वीपति शाह | Prithvipati shah – पंवार वंश
- पृथ्वीपति शाह गद्दी पर बैठते समय 07 वर्ष के थे।
- 1640 ई0 में पृथ्वी पति शाह का राज्यभिषेक हुआ।
- पृथ्वीपति शाह की संरक्षिका का महारानी कर्णावती थी।
- पृथ्वीपति शाह ने देहरादून में पृथ्वीपुर शहर बसाया।
- इसने राजगढ़ी नामक स्थान को दूसरी राजधानी बनायी और वहां का राजा दीलिप शाह को बनाया।
- मुगल राजा शाहजहां ने 1655 ई0 में खलीतुल्ला कासिम खां के नेतृत्व में गढ़ राज्य की सीमाओं को घेर लिया था।
- चंद राजा बहादुरचंद व सिरमौर राजा मेधांता प्रकाश ने मुगल सेना का साथ दिया, तीनों सेनाओं ने दून घाटी पर विजय प्राप्त की।
- पृथ्वीपति शाह द्वारा मुगल शहजादा सुलेमान शिकोह को 1658 ई0 में शरण दी थी। सुलेमान शिकोह को अभागा शहजादा कहा जाता है।
- दारा शिकोह को लघु अकबर कहा जाता है।
- सुलेमान को पकड़ने के लिए औरंगजेब ने जयसिंह को गढ़वाल भेजा था।
- मेदनीशाह और रामसिंह ने मिलकर सुलेमान शिकोह का 1660 ई0 में दिल्ली दरबार में पेश किया।
- पृथ्वीपति शाह के पुत्र मेदनीशाह ने सुलेमान शिकोह को औरंगजेब को सौंपा था।
- पृथ्वीपति शाह ने मेदनीशाह को देश निकाला दिया।
- पराक्रमी राजा का डरपोक पुत्र मेदनीशाह को कहा जाता है।
- मदेनीशाह की दिल्ली में 1622 ई0 में मृत्यु की खबर औरंगजेब ने पत्र लिखकर पृथ्वीपति शाह को दी।
- ट्रैविर्नियर ने अपनी पुस्तक ट्रैवल्स इन इण्डिया में गढ़ राज्य के बहादुरी की प्रशंसा की है।
- हाटकोटी की संधि पृथ्वीपति शाह व मन्धाता प्रकाश के बीच हुयी।
- औरगंजेब का 1665 ई0 का पत्र जिसमें फतेह शाह को राजा बनने की बधाई देता है।
- पृथ्वीपति शाह ने लगभग 1664 ई0 में गद्दी त्यागकर अपने पौत्र फतेहशाह को राजा बनाया था और 1667 ई0 पृथ्वीपति शाह की मृत्यु को बाद उसका पौत्र फतेहशाह राजा बना।
फतेहशाह | Fatehshah – पंवार वंश
- गढ़वाल का शिवाजी फतेह शाह को कहा जाता है।
- फतेह शाह का गुरू गोविन्द सिंह की भांति घोड़े पर बैठा चित्र मिलता है, इस चित्र में उनकी उम्र 33 वर्ष लिखी गई है।
- हरीकृष्ण रतूड़ी के मुताबिक फतेह शाह की संरक्षिका राजमाता कटौंची थी।
- मतिराम ने फतेहशाह के समय को गढ़वाल का स्वर्ण काल कहा ।
- भैंगाणी का युद्ध गुरू गोविन्द सिंह एवं फतेहशाह के बीच 18 सितम्बर 1688 ई0 में हुआ। इस युद्ध का वर्णन गुरू गोविन्द सिंह की आत्मकथा विचित्र नाटक मे मिलता है।
- फतेह शाह ने अपनी पुत्री का विवाह बिलासपुर के राजा भीमचंद के पुत्र से किया था।
- मैमोयर्स आफ देहरादून के लेखक आर0सी0विलियम्स थे।
- मैमोयर्स आफ देहरादून में लिखा है कि फतेहशाह ने सहानपुर पर आक्रमण किया और फतेहपुर नगर बसाया।
- गढ़वाल का अकबर फतेहशाह को कहा जाता है, क्योंकि इनके दरबार में नवरत्न थे।
- नवरन्त में प्रमुख श्री शशीधर डंगवाल, हरिदत नौटियाल, हरिदत थपलियाल, सहदेव चन्दोला आदि थे।
- फतेहशाह ने गुरू रामराय को अपने दरबार में बुलाया और देहरादून, में गरूद्वारा बनवाने में मद्द की।
- फतेहशाह ने गुरूद्वारा की आय हेतु तीन ग्राम खुडबुड़ा, राजपुर, चामासी दान मे दिये थे।
- ज्बकि फतेहशाह के पौत्र प्रदीपशाह ने चार गांव छायावाला, भूजनवाला, पण्डितवारी, और घाटवाला गुरूद्वारा को दान में दिए।
- फतेहशाह ने समुद्रगुप्त की भांति मुद्रालेख लिखवाया था।
- फतेहशाह की उत्तराधिकारी उपेन्द्रशाह था।
- मेलाराम ने उपेन्द्रशाह को प्रीतमशाह कहा था।
- उपेन्द्रशाह ने लगभग 01 वर्ष तक शासक किया था।
- उपेन्द्रशाही की मृत्यु दीपावली के दिन हुयी।
फतेहशाह की दरबारी | Fatehshah’s court
- रत्न कवि, जटाधर व मतिराम फतेहशाह की दरबारी कवि थे।
- फतेहशाह कर्ण ग्रन्थ के रचयिता श्री जटाधर थे।
- श्री रत्न कवि का हस्त लिखित ग्रंथ फतेह प्रकाश है।
- रत्नकवि का दूसरा क्षेमराज था।
- रत्नकवि ने फतेहशाह का हिन्दुओं का रक्षक, शील का सागर भी कहा था।
- रत्नकवि के अनुसार फतेहशाह के समय इतनी शांति थी कि लोग अपने घरों में ताले तक नहीं लगाते थे।
- ग्रंथ वृत्त कौमुदी या छन्दसार पिंगल की रचना कवि मतिराम द्वारा की गयी हैं
- मतिराम का रसराज गं्रथ श्रीनगर के चित्रकार मंगतराम तुंवर को समर्पित है।
- कविराज सुखदेव ने अपने ग्रन्थ वृत्त विचार में फतेह शाह की वीरता का वर्णन किया है।
- फतेहप्रकाश ग्रंथ का सम्पादन ठाकुर शूरवीर सिंह ने किया।
- फतेहशाह यशोवर्णनम् पुस्तक के रचियता रामचन्द्र थे।
- फतेहशाह की कीर्ति सुनकर शिवराज भूषण व नीलकण्ठ या जटाशंकर ने श्रीनगर की यात्रा की।
प्रदीप शाह | Pardeep Shah – पंवार वंश
- प्रदीप शाह का शासनकाल 1717 ई0 से 1757 ई0 तक था, लखनऊ संग्रहालय में रखे सिक्के के आधार पर आधारित है।
- प्रदीप शाह के मिले दानपत्र के आधार पर 1717 ई0 से 1772 ई0 तक माना गया है।
- प्रदीप शाह की संरक्षिका कनक देई और इसके पिता का नाम दिलीप शाह था।
- प्रदीपशाह का दीवान रघुपति चौथा था।
- प्रदीप शाह के सेनापति या बजीर का नाम चंद्रमणि डंगवाल और रंगी बिष्ट था।
- प्रदीपशाह का बख्शी विद्याधर डोभाल था।
- प्रदीपशाह ने मौलाराम तोमर चित्रकार को संरक्षण प्रदान किया।
- प्रदीप शाह ने दून की राजधानी नवादा से हटाकर धामूवाल में स्थापित की थी।
- प्रदीपशाह के काल दरबारी संयत्रों में पांच भाई कठैतो को नाम आता है, जो सादर सिंह कठैत के पुत्र थे।
- पांच भाई कठैतों का वध पंचभैयाखाल (पौड़ी) में किया गया।
- प्रदीपशाह के समय कुमाऊँ पर 1743 ई0 में रोहेला आक्रमण अली मोहम्मद के नेतृत्व में हुआ।
- प्रदीपशाह ने चंद शासक कल्याण चंद की सहायता की।
- रोहेलों के साथ संधि के तहत कल्याण चंद पर 3 लाख रूपये की मांग की, जो राशि प्रदीप शाह ने उदार के तहत चंद शासक को दी।
- सहारनपुर के रोहेला सरदार नजीब खां ने 1757 ई0 में दून पर आक्रमण किया।
- 1757 ई0 से 1770 ई0 तक दून पर नजीबुद्दौला या नजीब खां का अधिकार रहा।
- प्रदीपशाह का कार्यकाल चंद व पंवार की मित्रता के लिए जानना जाता है।
ललित शाह | Lalit Shah – पंवार वंश
- ललितशाह 1772 ई0 में गद्दी पर बैठा।
- इसके समय कुमाऊँ का शासक दीपचंद था, जिसके शासन पर मोहनचंद ने कब्जा कर लिया था।
- ललितशाह के समय सिखों ने दो बार 1775 और 1778 ई0 देहरादून पर आक्रमण किए।
- ललित शाह व सिखों के बीच सिरमौर का युद्ध 1779 ई0 में हुआ।
- हर्षदेव जोशी ने ललितशाह को कूर्मांचल विजय के लिए आमंत्रित किया था।
- बग्वाली पोखर का युद्ध भी 1779 ई0 में ललितशाह व मोहनचंद के बीच हुआ।
- ललितशाह ने कुमाऊँ पर आक्रमण किया और मोहनचंद युद्ध से भाग गया था।
- ललितशाह ने प्रद्युम्न शाह को कुमाऊँ की गद्दी पर बैठा दिया।
- हर्षदेव जोशी प्रद्युम्न शाह ने अपने आप को दीपचंद का दत्तत पुत्र घोषित किया था।
- ललितशाह के चार पुत्र थे- जयकृत शाह, प्रद्युम्न शाह, पराक्रम शाह, प्रीतम शाह।
- ललितशाह की मृत्यु हवालबाग (दुलड़ी) नामक स्थान पर मलेरिया के कारण हुयी।
- प्रद्युम्न शाह डोटयाली राणी का पुत्र था।
- ललित शाह उत्तराधिकारी जयकृत शाह था।
जयकृत शाह | Jaykrit Shah – पंवार वंश
- जयकृत शाह क्यूंठली राणी का पुत्र था।
- इसके बाद जयकृत शाह 1780:1785 ई0 तक गद्दी पर बैठा।
- जयकृत शाह के समय वजीर जयदेव डंगवाल था।
- जयकृत दरबारी आपस में दो दलों में बंट गए, जहां एक ओर खण्डूरी व दूसरी ओर डोभाल में बंट गए।
- जयकृत शाह के समय कृपाराम डोभाल मुख्तार था।
- जयकृत शाह के समय नित्यानंद खण्डूरी फौजदार था।
- कृपाराम डोभाल ने खण्डुरी दल को दबाने तथा नेगी दल विरूद्ध विद्रोह कर दिया।
- फिर दून के फौजदार घमण्ड सिंह श्रीनगर गया और कृपाराम डोभाल की हत्या करके स्वयं मुख्तार बना।
- राजा घमण्ड सिंह के हाथों की पुतली वन कर रह गया।
- राजा ने सिरमौर के राजा जगतप्रकाश के यहां दूत भिजवाया।
- जगत प्रकाश ने कपरौली के युद्ध में प्रद्युम्न, पराक्रम व विजयराम नेगी की सेना को संयुक्त रूप से हराया।
- जगत प्रकाश श्री नगर आकर घमण्ड सिंह का वध कर दिया।
- सिख आक्रमणों से बचने के लिए जयकृत शाह ने सिखों को एक कर दिया जिसका नाम राखी कर था।
- 1786 ई0 में जयकृत शाह ने श्री रघुनाथ मन्दिर में अपने जीवन का अन्त कर दिया।
प्रद्युम्न शाह | Pradyuman Shah – पंवार वंश
- बद्रीदत्त पाण्डे के अनुसार प्रद्युम्न शाह गढ़वाल व कुमाऊँ का संयुक्त शासक नियुक्त किया गया।
- प्रद्युम्न शाह का शासन काल 1786 ई0- 1809 ई0 तक रहा
- रामी व धरणी खण्डूरी भाई प्रद्युम्न शाह के राज्य में मन्त्री थे।
- हर्षदेव जोशी ने प्रद्युम्न शाह के प्रतिनिधि के रूप में कुमाऊँ पर शासन किया।
- लेकिन मोहनचंद व लालसिंह ने कुमाऊँ पर अधिकार कर लिया।
- हर्षदेव जोशी के आमन्त्रण पर गोरखों ने अल्मोड़ा पर 1790 में कब्जा किया था।
- 1791 में गढ़वाल पर गोरखों ने आक्रमण किया, लंगूरगढ़ में गोरखाओं को हार का सामना करना पड़ा।
- 1791 में पराजित गोरखाओं से 25000 वार्षिक कर देकर शत्रुओं से राज्य की रक्षा की।
- सम्वत् 1851-1852 ई0 अर्थात 1795 ई0 में गढ़वाल में भंयकर अकाल पड़ा, इसको गढ़वाल में इकावनी-बावनी के नाम से जाना जाता है।
- बावनी शब्द का प्रयोग गढ़वाल में भंयकर अकाल के लिए प्रयोग होता है। और 1803 ई0 में गढ़वाल में भंयकर भूकम्प आया।
- गोरखों ने अमर सिंह थापा व हस्तीदल चैतरिया के नेतृत्व में आपदा ग्रस्त गढ़वाल पर आक्रमण किया।
- वैली आफ दून के लेखक ए0आर0गिल है।
- गढ़नरेश ने बहुमूल्य सिंहासन और आभूषण सहारनपुर में बेचकर 12000 सैनिकों की सेना बनायी।
- लन्डौर के गूजर राजा रायदलयाल सिंह ने गढ़पति की सहायता की।
- 14 मई 1804 ई0 को खुड़बुड़ा के मैदान में प्रधुम्नशाह वीरगति का प्राप्त हो गये।
- अक्टूबर 1814 ई0 में सुदर्शन शाह के कहने पर लार्ड हेस्टिगंज ने गोरखाओं के विरूद्ध अंग्रेजी सेना भेज दी।
- गढ़वाल का विलासी राजा पराक्रम शाह को कहा जाता है।
- मौलाराम के गढ़गीता संग्राम या गणिका नाटक में पराक्रम शाह के अत्याचारों का वर्णन मिलता है।
- इसके अनुसार पराक्रम शाह ने मौलाराम की गणिका छीन ली व प्रद्युम्न शाह क वफादार मन्त्री रामी व धरणी की हत्या करा दी।
- प्रद्युम्न शाह के भाई प्रेम के कारण गोरखों के साथ युद्ध में शहीद हो गएः अतः हम कह सकते हैं कि प्रद्युम्नशाह गढ़वाल का हुमांयू था।
🙏🙏🙏🙏
ReplyDeleteSir बहुत सुंदर sir 🙏
ReplyDelete